महात्मा गांधी के विषय में अभद्र टिप्पणी करना स्वीकार नही किया जायेगा
All Type news Mp मध्य प्रदेश की राजनीति में आज कल कुछ चर्चित संतों ने महात्मा गांधी की अभद्र आलोचना करके हलचल मचा दी है। कुछ ही दिनों में सबसे पहले कालीचरण द्वारा रायपुर में सार्वजनिक मंच से महात्मा गांधी को अभद्रशब्द कहे जाने का मामला चर्चा में रहा।
उनकी इस भाषा को लेकर छत्तीसगढ़ से लेकर मध्य प्रदेश तक जोर दार राजनीति हो रही है।
एक्चुअली कालीचरण को जब मध्य प्रदेश के खजुराहो से गिरफ्तार किया तो गृहमंत्री डा. नरोत्तम मिश्र ने यह बयान देकर नाखुशी जाहिर की कि छत्तीसगढ़ की पुलिस परशाशन ने प्रक्रिया का पालन अच्छी तरह नहीं किया। इनसे संघीय नियमों की अवहेलना हुई है। डा. मिश्र के बयान के बाद छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने भी पलटवार जवाब दिया और प्रश्न की कि डा. मिश्र बताएं कि महात्मा गांधी को गाली देने वाले व्यक्त को गिरफ्तार करके पुलिस ने क्या गलत किया । उन्होंने यह भी प्रश्न की कि महात्मा गांधी के ऊपर कालीचरण ने जो शब्द कहे क्या उससे वह और उनकी सरकार सहमत हैं। कालीचरण की गिरफ्तारी के पश्चात से ही इस मामले पर कांग्रेस और भाजपा नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप का माहोल चलने लगा है।
बीजेपी के नेता कैलाश विजयवर्गीय ने भी अभी कुछ दिन पूर्व इंदौर में कालीचरण की गिरफ्तारी को गुनाह से भी बड़ी कार्रवाई कहकर उनका बचाव करने की कोशिश की थी। अभी भी यह प्रकरण चर्चा के विषय में है कि मंगलवार को कथावाचक तरुण मुरारी ने महात्मा गांधी के खिलाफ अभद्र बाते करके नए विवाद को जन्म दे दिया। मामले ने इस कदर तूल पकड़ा कि नरसिंहपुर पुलिस ने उनके खिलाफ मुकदमा दायर कर दीया। अब उनकी गिरफ्तारी की मांग उठाई जा रही है। इस बीच बुधवार को तरुण मुरारी ने एक नया वीडियो डाल कर अपनी टिप्पणी पर यह कहते हुए
क्षमा मांगी है कि उन्होंने भावावेश में महात्मा गांधी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी कर दी थी। उनके माफी मांगने पर पुलिस ने भी साफ शब्दों में कह दिया है कि मुकदमा दर्ज हो चुका है, इसलिए ऐसे माफीनामे से उसे खारिज नहीं किया जा सकता। कांग्रेस ने तरुण मुरारी को गिरफ्तार करवाने की मांग की है।
दरअसल कुछ ही पूर्व दिनों में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और वीर सावरकर पर विवादित टिप्पणी देकर लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने की चलन-सी आ गई है। कुछ दिनों पूर्व कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने सावरकर पर लिखी गई किताब का जिक्र करते हुए विवादित बयान किया था, जिसकी देश भर में आलोचना की गई थी। मंगलवार को तरुण मुरारी ने बापू को राष्ट्रपिता नाम देने पर सवाल उठाए थे। उन्हें राष्ट्र के दो हिस्से करवाने का जिम्मेदार ठहराया था। इसके पूर्व रायपुर में कालीचरण ने बापू को गोली मारने वाले नाथूराम गोड़से को नमन किया और महात्मा गांधी के प्रति अभद्र शब्द का प्रयोग किया था। कुछ समय पहले अभिनेत्री कंगना रनोट ने भी गांधीजी की जिक्र में अहिंसा का मजाक उड़ाते हुए कहा था कि दूसरा गाल सामने करने से 'भीख' मिलती है, आजादी नहीं। महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी कहते हैं कि ये अवांछित टिप्पणियां ऐसे व्यक्त करते हैं, जिन्हें हकीकत में महात्मा गांधी के विषय में कुछ भी पता नहीं है। उन्हें न तो इतिहास की पूरी जानकारी है और न तथ्यों की समझ।
वास्तव में आलोचना के नाम पर अभद्र कॉमेंट करने के इस रवाइए को बढ़ाने के लिए राजनीति एवं राजनेता अधिक उत्तरदायी हैं। इन्होंने ही सार्वजनिक मंचों से अभद्र टिप्पणियां करके ऐसे लोगों की हिम्मत को बढ़ावा दी है। ज्यादातर मामलों में यह भी देखा गया है कि बाद में विवाद भड़काऊ होने पर अक्सर वे लोग दिखावे के लिए माफी भी मांग लेते हैं। गए कुछ वर्षो में कईयो नेता इस तरह के विवादित बयान देते रहे हैं। अब उन्हीं की रास्ते पर सब चल पड़े हैं। अब यह सवाल उठता है कि ऐसे शब्द कहने की आवश्यकता ही क्या है कि बाद में क्षमा मांगनी पड़े? आखिर बयानवीर नेता और संत यह क्यों नहीं विचार करते कि कमान से तीर छूट जाए तो उसे रिटर्न नहीं लिया जा सकता।
राजनीति शास्त्री और अमरकंटक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी इस पूरे व्याख्या पर क्षोभ व्यक्त करते हैं। वह कहते हैं कि महात्मा गांधी की निंदा करने से पहले किसी को भी उनकी भावभूमि को जानना पड़ेगा। उनके वांगमय को पढ़ना एवम सुनना पड़ेगा। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर उनके विषय में कुछ भी कह देना मान्य नहीं हो सकता।
इसमें कोई दो संदेह नहीं कि गांधीजी के विचारों से सहमत या असहमत हुआ जा सकता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपनी राय रखने का अधिकार सबको है, लेकिन अपनी बात बताने के नाम पर महात्मा गांधी का आलोचना करने का अधिकार किसी को नहीं दिया जा सकता है। यह हमारे लोकतंत्र की संस्कृति है कि किसी को भी अपनी बात रखने की आजादी है, लेकिन इस आजादी की भी कोई दायरा होनी चाहिए।
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