Sardar Udham Singh , जिसने भारत देश की मिट्टी की खाई थी कसमे , लंदन मे पहुंचकर किया था अंग्रेजों का सीना छलनी


All Type news विकी कौशल ( Vicky Kaushal ) की अगामी  फिल्म ' सरदार उधम ' का ट्रेलर ( Sardar Udham Trailer ) जैसे रिलीज़ हुआ  एक बार फिर लोग अपने  देश के लिए अपनी जान पर खेलने वाले क्रांतिकारी शूरवीर को यादो को जाहेने बिठा रहे हैं । सरदार उधम की जिंदगी के बारे मे बनी इस फिल्म में विकी कौशल एक बार फिर जांबाज देशभक्त की अभिनय निभाते नजर आ रहे हैं । 
आगे हम जानेगे  , कौन थे उधम सिंह , जिन्होंने हर देशवासियों का सिर और सीना गर्व से चौड़ा हो जाता  था ।

उधम सिंह का कहनी  जालियांवाला बाग कांड से मिला  है उधम सिंह के बारे में कुछ भी कहने से पहले एक बार फिर से देश की सबसे दुखद हादसा  जालियांवाला बाग कांड के बारे में जान लेना जरूरी है । उधम सिंह का यह किस्सा इसी नरसंहार वाले 

जालियांवाला बाग कांड से जुड़ा है । 13 अप्रैल 1919 का दिन इतिहास के पन्ने पर इसी कांड के नाम से प्रचलित है । पंजाब के अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के निकट जालियांवाला बगीचे में यह दर्दनाक घटना  हुई थी । दरअसल , बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक मीटिंग रखी गई । यह पूरी तरह से एक शांतिपूर्ण सभा थी जिसमें एकजुट होने के लिए हजारों भारतीय पहुचे  हुए थे । इस सभा का मुद्दा ' रॉलेट एक्ट ' का विरोध था ।

रॉलेट ऐक्ट क्या था ?  रॉलेट ऐक्ट को काला कानून भी कहा जाता है । यह कानून तत्कालीन ब्रिटिश सरकार तहत भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को दबाने के लिए बनाया गया था । इस कानून के तहत ब्रिटिश सरकार को ये मान्यता  प्राप्त था कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए भी उसे जेल में बंद करा जा सकता था । इसी कानून के तहत कांग्रेस के सत्य पाल और सैफुद्दीन किचलू को अंग्रेजों ने गिरफ्तार  कर लिया था ।

जालियांवाला बाग में लासो का ढेर लग गया यहां शांतिपूर्वक भाषण हो रहा था , जिसमें महिलाये  - पुरुष और बच्चे भी एकत्रित  थे । ठीक उसी वक्त ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल डायर अपनी पूरी फौज लेकर वहां उपस्तिथि  हो गए और निहत्थे मासूमों पर गोलियां बरसाने शुरू कर दिया । जब  किसी को कुछ समझ मे आता अपने आगे  लाशें बिछने लगीं थी  । लोग डरकर और घबरा कर वहां से भागने लगे , कोई दीवार पर चढ़ने की कोशिश करने लगा तो कई लोग गोलियों से बचने के लिए वहां मौजूद कुएं में कूद गए और ऐसे में कुएं के अंदर भी लोगों का ढेर लगने लगा । बताया जाता है कि इस घटना में 120 लोगों के शव केवल कुएं से मिले थे । इस घटना ने देश भर के लोगों को झकझोर कर रख दिया था |

जिनमें से एक सरदार उधम सिंह भी शामिल  थे । बचपन में ही अनाथ हो गए थे सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था , जिनका वास्तविक  नाम शेर सिंह था । उनके पिता सरदार तेहाल सिंह जम्मू उपल्ली गांव में रेलवे चौकीदार रहा करते थे । तभी  महज 7 साल के उम्र मे उधम सिंह के  सिर से मां - बाप का सारा छिन गया |

जिसके पश्चात  उन्हें उनके भाई के संग अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय में रखने लगे थे  । वहीं शेर सिंह को लोग उधम सिंह के नाम से बुलाने  लगे थे  । साल 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया । उधम सिंह , शहीद भगत सिंह को अपना गुरु समझने लगे थे ।मिट्टी को हाथ में लेकर ले ली थी शपथ अनाथालय से बाहर  के बाद इसी साल जालियांवाला बाग का नरसंहार देखने को मिला  । 

डायर के इस हरकत पर बौखलाए उधम सिंह पर अब खूब के बदले खून सवार हो चुका था और वह आक्रोश के आग  में धधक रहा था  । कहते हैं कि उधम सिंह ने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर जनरल डायर और तत्कालीन पंजाब के गर्वनर माइकल ओ ड्वायर को बदला लेने की  शपथ ली कि जब तक इस नरसंहार के असली दोशी  को मौत की नींद नहीं सुला दूंगा , तब तक सुकून से नहीं बैठूंगा  । अब डायर की मौत की नींद सुलाना उनका अहम  लक्ष्य बन गया ।

पांच साल जेल की सजा देश के इस नरसंहार का बदला लेने के लिए क्रांतिकारी उधर सिंह ने विदेश की तरफ रुख किया । साल 1920 में वे अफ्रीका पहुंचे थे वर्ष  1921 में नैरोबी के रास्ते संयुक्त देश  अमेरिका जाने की कोशिश की लेकिन वीजा न मिलने के कारण ऐसा हो नहीं पाया और उन्हें स्वदेश लौटना पड़ा । जबकि  उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार कोशिश करते रहे और आखिरकार 1924 में वह अमेरिका पहुंचने में सफल  हो गए । वह यहां पहुंचकर अमेरिका में सक्रिय गदर पार्टी में शामिल हो गए और फिर क्रांतिकारियों से मजबूत सम्पर्क सशक्त  बनाते चले गए ।

उन्होंने फ्रांस , इटली , जर्मनी , रूस आदि ऐसे  कई देशों की यात्राएं करके क्रांतिकारियों को जोड़ा । वर्ष  1927 में वह रिटर्न  भारत लौटे । भारत वापस  उन्होंने भगत सिंह से मुलाकात की और इसके कुछ महीने बाद ही वह अवैध हथियारों और प्रतिबन्धित क्रांतिकारी साहित्य के साथ पुलिस के हत्थे चढ़ गए । उन्हें साल - दो साल नहीं बल्कि पांच वर्ष  की सजा हो गई ।

उधम सिंह की नजर  माइकल फ्रेंसिस ओ ड्वायर पर इसी दौरान 1927 में जेनरल डायर की मृत्यु  ब्रेन हेमरेज से हो गई और अब उधम सिंह की निगाह माइकल फ्रेंसिस ओ ड्वायर पर थी । साल 1931 में उधम सिंह जेल से रिहा हुए । पुलिस की कड़ी निगाहें उनपर थीं और उन्हें हर दिन मजदूरी  देने के नाम पर काफी प्रताड़ित भी किया जाता था । इसी वजह से वह अमृतसर पहुंच गए और अपना नाम चेंज कर  मोहमद सिंह आजाद रख लिया । साल 1933 में पुलिस को झांसा देकर वह कश्मीर पहुंच गए और 1934 में वह इंग्लैंड पहुंचने में सफल  हो गए ।
डायर के सीने को मंच पर कर दिया छलनी इंग्लैंड में उधम सिंह ने किराए पर एक घर लिया और जनरल डायर को मारने की तैयारियां करने लगे । उधम सिंह को पता चला कि 13 मार्च , 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रायल सेन्ट्रल एशियन सोसायटी का संयुक्त अधिवेशन होने जा रहा है , जहां माइकल ओ डायर भी आमंत्रित है । यहीं उधम सिंह अपनी मोटी पुस्तक  लेकर पहुंचे , जिसके पन्नों को फाड़कर  उस कितबा में पिस्तौल छिपा रखा था । कहते हैं जैसे ही डायर मंच पर पहुंचा उधम सिंह ने गोलियां बरसानी शुरू कर दी । माइकल ओ डायर का सीना छलनी करने के बाद उधम सिंह के सीने में 21 वर्ष से धधकती ज्वाला शांत हो चुकी थी । उधम सिंह के इस अटेक  को देखकर हर कोई चकित  रह गया था । इसी घटना के बाद उधम सिंह को शहीद - ए - आजम की उपाधि दी गई ।

उधम सिंह को फांसी दे दी गई उधम सिंह को  दुबारा गिरफ्तार कर लिए गए और उनपर मुकदमा चला । 4 जून , 1940 को उधम सिंह को मारने  का दोषी करार दिया गया और फिर 31 जुलाई , 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी पर लटका दी गई । देश की आजादी में उधम सिंह क्रांतिकारियों के लिए सीख  बन गए और इतिहास में उनका नाम अमर हो गया ।

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