अंतरिक्ष में कंडोम का राज: शारीरिक संबंध नहीं, तो एस्ट्रोनॉट्स क्यों ले जाते हैं इसे? वजह आपको हैरान कर देगी!



अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट्स कंडोम क्यों ले जाते हैं, इसका सच कुछ और ही है।

नासा को एस्ट्रोनॉट्स के 'पुरुष अहं' (Male Ego) से निपटने के लिए एक अनोखा तरीका अपनाना पड़ा।

आज अंतरिक्ष में टॉयलेट टेक्नोलॉजी पूरी तरह बदल चुकी है।

नई दिल्ली: जब भी हम अंतरिक्ष यानी स्पेस के बारे में सोचते हैं, तो हमारे दिमाग में हाई-टेक स्पेससूट पहने, जीरो ग्रैविटी में तैरते हुए अंतरिक्ष यात्रियों की तस्वीरें उभरती हैं। यह दुनिया बेहद ग्लैमरस और रोमांचक लगती है। लेकिन इस चमक-दमक के पीछे कई ऐसी चुनौतियाँ छिपी हैं, जिनके बारे में हम कभी सोचते भी नहीं।

अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण (Gravity) न होने के कारण खाना, सोना, चलना जैसे रोजमर्रा के काम भी बेहद मुश्किल हो जाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि एस्ट्रोनॉट्स अपने साथ कंडोम क्यों ले जाते हैं? नहीं, इसका शारीरिक संबंधों से कोई लेना-देना नहीं है, जैसा कि ज्यादातर लोग सोचते हैं। असली वजह जानकर आप हैरान रह जाएंगे।

आखिर अंतरिक्ष में कंडोम का असली काम क्या था?

यह बात अंतरिक्ष यात्रा के शुरुआती दिनों की है। आज की तरह तब एडवांस्ड टॉयलेट सिस्टम नहीं हुआ करते थे। जीरो ग्रैविटी में सबसे बड़ी चुनौती थी- पेशाब करना। धरती पर यह एक सामान्य क्रिया है, लेकिन स्पेस में यह एक गंभीर समस्या बन सकती थी।

नासा के एक पूर्व एस्ट्रोनॉट रस्टी श्वाइकार्ट ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि उस दौर में पुरुष अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एक खास डिवाइस बनाई गई थी। यह डिवाइस दिखने में बिल्कुल कंडोम जैसी थी, जिसे अंतरिक्ष यात्री अपने प्राइवेट पार्ट पर पहनते थे। इस डिवाइस से एक ट्यूब जुड़ा होता था, जो पेशाब को एक स्टोरेज सिस्टम तक ले जाता था। यह सिस्टम माइक्रोग्रैविटी में यूरिन को सुरक्षित तरीके से इकट्ठा करने में मदद करता था।

साइज़ की समस्या और 'पुरुष अहं' का अनोखा समाधान

शुरुआत में यह "कंडोम सिस्टम" सभी के लिए एक ही साइज का बनाया गया, लेकिन यह आइडिया बुरी तरह फेल हो गया। हर इंसान के शरीर की बनावट अलग होती है, जिस वजह से यह डिवाइस अक्सर लीक हो जाती थी और अंतरिक्ष यात्रियों को बहुत असुविधा होती थी।

इस समस्या को सुलझाने के लिए नासा ने तीन साइज निकाले: छोटा (Small), मीडियम (Medium), और बड़ा (Large)। लेकिन यहाँ एक और मनोवैज्ञानिक समस्या खड़ी हो गई - 'पुरुष अहं' (Male Ego)।

जब अंतरिक्ष यात्रियों को साइज चुनने के लिए कहा जाता, तो लगभग सभी 'बड़ा' (Large) साइज ही चुनते थे, भले ही वह उन्हें फिट न आता हो। कोई भी एस्ट्रोनॉट छोटा या मीडियम साइज चुनकर खुद को 'कम' नहीं आंकना चाहता था। इसका नतीजा यह हुआ कि डिवाइस फिर से लीक होने लगी और मिशन के लिए परेशानी खड़ी हो गई।

इस मनोवैज्ञानिक उलझन को सुलझाने के लिए नासा ने एक शानदार तरीका निकाला। उन्होंने साइज़ के नाम ही बदल दिए!

छोटा (Small) बन गया 'लार्ज' (Large)

मीडियम (Medium) बन गया 'एक्स्ट्रा लार्ज' (Extra Large)

बड़ा (Large) साइज़ कहलाया 'हीरो' (Hero)

इस बदलाव के बाद अंतरिक्ष यात्री बिना किसी शर्मिंदगी के अपने लिए सही फिटिंग वाला साइज चुनने लगे और लीकेज की समस्या खत्म हो गई।

आज कितना बदल गया है सिस्टम?

बेशक, अब टेक्नोलॉजी बहुत एडवांस हो चुकी है। आज के स्पेस मिशनों में महिला और पुरुष, दोनों अंतरिक्ष यात्रियों के लिए यूनिसेक्स और हाई-टेक स्पेस सूट और टॉयलेट सिस्टम का इस्तेमाल होता है। ये सिस्टम पहले से कहीं ज्यादा आरामदायक और प्रभावी हैं।

अंतरिक्ष में कंडोम की यह कहानी हमें बताती है कि स्पेस मिशन में हर छोटी से छोटी चीज के लिए कितनी गहरी प्लानिंग और इनोवेटिव सोच की जरूरत होती है। यह सिर्फ रॉकेट साइंस ही नहीं, बल्कि इंसानी मनोविज्ञान को समझने का भी एक बेहतरीन उदाहरण है।

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